bollywood Hindi movie bhool bhulaiyaa 3 review , भूल भुलैया 3 फिल्म का लेखा जोखा

 1 नवंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली फिल्म 

Bhool bhooleya 3
भूतिया कामेडी फ़िल्मों के बंपर कमाई के मामले में स्त्री 2 ने 600 करोड़ से ज्यादा की कमाई करके इतिहास में नाम अमर कर दिया है।  
अब ऐसे में उसके सामने टिकने के लिए इस तरह की भूतिया फिल्मों को कमर कसकर खड़े होने की जरुरत थी। 
Bhool Bhulaiyaa 3 तो इस मामले में भूली भटकी साबित हुई हैं, ऐसा मानना हैं दर्शकों का,
साल 2007 में जब भूल भुलैया के जरिए हारर कॉमेडी का जॉनर दर्शकों को दिया था, तो उन्हें भी नहीं पता था कि आगे चलकर इस लीग में फिल्में बनाना आसान नहीं होगा। 
कल्ट फिल्मों को बनाने में मेहनत लगती है, लेकिन खराब करने में नहीं।

 आइए जानते है कैसी है भूल भुलैया 3 की कहानी?

रूह बाबा यानि कि रूहान और दो-दो भूतनी मिलकर स्त्री 2 का मुकाबला नहीं कर पाए। 
रूह बाबा (कार्तिक आर्यन) का भूतों का पकड़ने का ढोंग करना जारी है। बच्चों के लिए ऊनी कपड़े खरीदने के लिए देखें
 राजघराने से ताल्लुक रखने वाली मीरा (तृप्ति) और उसके मामा (राजेश) रूहान को कहते हैं कि वो उनके साथ रक्त घाट चले, इसके लिए वह उसे एक करोड़ रूपये देंगे। 
रक्त घाट की हवेली के एक कमरे में मंजुलिका का भूत कैद है।
200 साल पहले जब उसे कैद किया गया था, तब भविष्यवाणी की गई थी कि उसी राजघराने से कोई पुर्नजन्म लेकर दरवाजा खोलकर दुर्गाष्टमी के दिन उसका खात्मा करेगा। 
रूह बाबा की शक्ल उस वक्त के राजकुमार देवेद्र नाथ से मिलती है। राजपुरोहित (मनीष वाधवा) का मानना है कि राजकुमार का पुनर्जन्म हुआ है। 
खैर, मंजुलिका (विद्या बालन) के बाद कहानी में मंदिरा (माधुरी दीक्षित) की भी एंट्री होती है। 
फिर कहानी के क्लाइमेक्स में जो ट्विस्ट आता है, वह आपका सिर चकरा देगा।

फिल्म के डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले ने अच्छा काम नहीं किया 

क्लाइमेक्स देखने के बाद जब आप पीछे जाकर चीजों को जोड़ना चाहेंगे कि मंजुलिका जो कर रही थी, वो कैसे और क्यों कर रही थी, 
तो हर सवाल के जवाब नहीं मिलेंगे, जैसे जब खुफिया दरवाजे के पीछे कैद आत्मा बाहर निकली ही नहीं, तो मल्लिका का निशाना इतना सटीक कैसे लगा या अंत में मंजुलिका के हाथों में जब रूह बाबा की गर्दन होती है 
और वह दिव्य तेल से घेरा बनाकर जब वह आग लगा देता है, तो उसकी आत्मा बाहर मौजूद अंजोलिका उर्फ मंदिरा के भीतर कैसे आती है।
फिल्म की कहानी, स्क्रीनप्ले और संवाद लिखने वाले आकाश कौशिक की कोशिश अच्छी थी,
 लेकिन कई जगहों पर बिना लॉजिक के सीन और कॉमेडी ने सारा मजा किरकिरा कर दिया। ट्रेलर में जितने जोक्स दिखाए थे, 
मजाल है कि उसके अलावा कोई और जोक फिल्म में हो। बस उन्हीं जोक के सहारे फिल्म पूरी होती हैं 
जॉनर को ध्यान में रखकर हंसने और डरने की बड़ी कोशिशें की, लेकिन सारी कोशिशें नाकाम साबित हुई।

अभिनय के बजाय तृप्ति डिमरी का ग्लैमरस पहलू ज्यादा हाइलाइट किया गया है। 
पर छोटे पंडित के रूप में राजपाल यादव, पंडिताइन के रोल में अश्विनी कालसेकर और बड़े पंडित की भूमिका में संजय मिश्रा की तिकड़ी एक बार फिर कॉमिडी के डोज को बढ़ाती है। 
विजय राज भी अपने चरित्र में मजे करवाते हैं। 
अन्य किरदार भी ठीक ठाक हैं।

क्यों देखनी चाहिए तो - मजेदार हॉरर-कॉमिडी , भूतों में रुचि है और पारिवारिक फिल्मों के शौकीन हैं, राजपाल यादव, विद्या बालन और माधुरी दीक्षित के फैन हो तो यह फिल्म देख सकते हैं।